Monday, January 28, 2019

कांग्रेस सत्ता में आई तो गरीबों के लिए न्यूनतम आय गारंटी योजना शुरू करेंगे: राहुल गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव से पहले गरीबों के लिए नई योजना का ऐलान किया। सोमवार को यहां किसान आभार सम्मेलन में उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो सरकार गरीबों के लिए न्यूनतम आय गारंटी की शुरुआत करेगी। उन्होंने ट्वीट किया- तब तक न्यू इंडिया नहीं बना सकते हैं, जब तक कि हमारे करोड़ों भाई-बहन गरीबी का दंश झेलते रहेंगे।

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ''आपने देखा, जो मैं कहता हूं, वो करके दिखाता हूं। फिर चाहे किसानों की कर्जमाफी हो, अधिग्रहित जमीन वापस करने का मामला हो। कांग्रेस ने मनरेगा में 100 दिन रोजगार दिया। सूचना का अधिकार दिया। अब हम ऐसा कदम उठाने जा रहे हैं, जो दुनिया की किसी सरकार ने नहीं किया। हमने फैसला किया है कि देश के हर गरीब को 2019 के बाद कांग्रेस सरकार न्यूनतम आय की गारंटी देने जा रही है।''

भाजपा ने देश में दो भारत बना दिए
राहुल गांधी ने कहा- ''भाजपा नेता जो 15 सालों में नहीं कर पाए, वो कांग्रेस ने 2 दिन में कर दिया। देश में पैसे की कमी नहीं है। केंद्र सरकार एक उद्योगपतियों का और दूसरा गरीबों का भारत बनाना चाहती है। एक जहां, ललित मोदी, विजय माल्या जैसे लोगों को धन मिल जाएगा। अनिल अंबानी को 30 हजार करोड़ रुपए। दूसरा वो देश है जहां हम और आप हैं, जिन्हें कुछ नहीं मिल सकता। सिर्फ सुनने के लिए मन की बात मिलती है।''

छत्तीसगढ़ का चावल विदेशों में जाएगा
राहुल ने कहा कि केंद्र में हमारी सरकार बनने पर किसान और पंचायत से पूछकर जमीन ली जाएगी। अगर काम नहीं हुआ तो पांच साल में इसे वापस कर देंगे। छत्तीसगढ़ देश का ही नहीं, पूरी दुनिया के धान का कटोरा बनेगा। यहां का चावल पूरी दुनिया में ले जाया जाएगा। हर किसी की डाइनिंग टेबल पर यहां का चावल होगा।

राहुल ने ऋण मुक्ति पत्र बांटे, किसानों ने सेल्फी ली
कांग्रेस अध्यक्ष ने किसानों को ऋण मुक्ति प्रमाण पत्र बांटे। प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनते ही सरकार ने 10 दिन से पहले ही अपना वादा निभाया और किसानों के कर्ज को माफ किया था। राज्य में कांग्रेस को मिली जीत के बाद राहुल का यह पहला दौरा था। राहुल की इस रैली को छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव का शंखनाद माना जा रहा है।

लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उत्तरप्रदेश में कांग्रेस नया प्रयोग कर सकती है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पूर्वी और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लिए दो अलग-अलग पार्टी अध्यक्ष नियुक्त करने की तैयारी में हैं। जल्द ही इनके नामों का ऐलान हो सकता है। हाल ही में कांग्रेस ने प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस महासचिव बनाया है।

उत्तरप्रदेश में संगठन को मजबूत करने के लिए राहुल ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पूर्वी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी है। इसी तरह पूर्वी और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लिए दो प्रदेश अध्यक्ष बनाए जा सकते हैं।

2 महासचिव, इसलिए 2 अध्यक्ष

पार्टी सूत्रों का कहना है कि एक प्रदेश अध्यक्ष को दो प्रभारी महासचिवों के साथ काम करने में मुश्किल होगी। इसलिए प्रदेश को दो हिस्सों में बांटते हुए अलग-अलग प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किए जा सकते हैं। इससे पहले पार्टी ने प्रदेश को चार क्षेत्रों में बांटते हुए प्रभारी नियुक्त किए थे।

पूर्वी उत्तरप्रदेश में ब्राह्मण को मिल सकती है कमान

सूत्र यह भी बताते हैं कि पूर्वी उत्तरप्रदेश में किसी ब्राह्मण नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। जबकि पश्चिमी उत्तरप्रदेश में ओबीसी या मुस्लिम नेता को प्रदेश अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। 

उत्तरप्रदेश में ये हैं 2 फाॅर्मूले

फाॅर्मूला नंबर 1- राज्य में दो प्रदेश अध्यक्ष रहेंगे जो अलग-अलग प्रदेश प्रभारियों के साथ काम संभालेंगे। इनके नीचे सेक्रेटरी और अन्य टीम रहेगी। 

फाॅर्मूला नंबर 2-  एक अध्यक्ष, चार कार्यकारी अध्यक्ष, आठ सचिव हो सकते हैं। इनमें चार पश्चिमी उत्तरप्रदेश और चार पूर्वी उत्तरप्रदेश में रहेंगे। 

Thursday, January 17, 2019

क्या झारखंड में पुश्तैनी ज़मीन खोज रहे हैं अमित शाह

मैंने यह कहा था कि अमित शाह जी के दादाजी ने 150-200 साल पहले देवघर में ज़मीन ख़रीदी थी. वह ज़मीन अमित जी के पिताजी या उनके नाम पर ट्रांसफ़र नहीं हो सकी. अमित जी को हाल ही में इस ज़मीन की जानकारी मिली, तो उन्होंने मुझे इसके बारे में बताया. मैंने उन्हें ज़मीन के कागज़ात निकलवाने को कहा है, ताकि हम उसके लोकेशन को ढूंढ सकें. यह उनकी पुश्तैनी संपत्ति है.'

बीजेपी सांसद डॉ. निशिकांत दुबे ने बीबीसी से यह बात कही.

उन्होंने बताया कि अमित शाह के पारिवारिक मुंशी को ज़मीन के कागजात निकालने के लिए कहा गया है, लेकिन अभी यह दस्तावेज़ नहीं मिल सका है. दस्तावेज़ मिलने के बाद हम लोग ज़मीन का पता कर सकेंगे कि वह देवघर के किस इलाके में है.

डॉ. निशिकांत दुबे झारखंड की गोड्डा संसदीय सीट से लोकसभा के सदस्य हैं. देवघर उनके संसदीय क्षेत्र का एक शहर है.

कुछ दिनों पहले उन्होंने यहां आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान यह कहकर सबको चौंका दिया था कि अमित शाह जी की देवघर में खतियानी ज़मीन है. यह कांफ्रेस उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष के आगामी 19 जनवरी को प्रस्तावित देवघर दौरे की जानकारी देने के लिए बुलायी थी.

उस प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद रहे एक पत्रकार ने बीबीसी से कहा, ''हम लोगों ने जब ज़मीन के बारे में ज़्यादा जानकारी चाही, तो सांसद ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. उन्होंने सिर्फ़ इतना कहा कि अमित शाह जी का देवघर से पुराना लगाव है. वे यहां के परमानेंट (खतियानी) वाशिंदे हैं.''

बिहार की सीमा से सटे देवघर की पहचान यहां स्थित प्रसिद्ध शिव मंदिर (बाबा बैद्यनाथ के मंदिर) से है. यहां पूजा करने देश भर के लोग आते हैं. इनके अलग-अलग पंडे (पुरोहित) हैं, जिनके पास उन सभी लोगों का लेखा-जोखा है, जो कभी यहां पूजा करने आए थे.

यहां के पंडों ने अपने 'दस्तख़ती' (रजिस्टर) में उन लोगों के दस्तख़त भी करा रखे हैं. उनके पास इन लोगों की 'वंशावली' भी है. पंडों का दावा है कि देवघर आने वाले हिंदू धर्मावलंबी बाबा मंदिर में मत्था टेके बगैर नहीं जाते.

गुजरात के पंडे यहां बैद्यनाथ गली में रहते हैं. दरअसल, यह एक ही परिवार (सीताराम शिरोमणि) के लोग हैं, जो गुजरात के अलग-अलग ज़िलों के लोगों की पूजा कराते हैं.

यहां मेरी मुलाकात दीनानाथ नरौने से हुई, जो अमित शाह के गृह क्षेत्र के पंडा हैं. उनके पूर्वज पिछले 200 सालों से मनसा (अमित शाह का पैतृक शहर) के लोगों की पूजा कराते रहे हैं. मुझे इनकी वंशावलियां दिखाते हुए उन्होंने दावा किया कि अमित शाह, उनके पिताजी या दादाजी यहां कभी पूजा करने नहीं आए. लिहाजा, 'दस्तख़ती' में उनके दस्तख़त नहीं है. इसलिए उनकी वंशावली भी नहीं बन सकी है.

दीनानाथ नरौने ने बीबीसी से कहा, ''अमित शाह जी की ज़मीन को लेकर सांसद महोदय का बयान बेबुनियाद है. कोई और अमित शाह होगा, जिसकी ज़मीन होगी. लेकिन, वे अमित शाह जो मनसा के रहने वाले हैं, बीजेपी के अध्यक्ष हैं, उनकी कोई ज़मीन देवघर में नहीं है. यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं. जब उनके परिवार का कोई यहां आया ही नहीं, तो फिर वे ज़मीन कैसे ख़रीद लेंगे.''

मेरे बाप-दादा की जानकारी में ऐसी कोई बात नहीं है. अगर ज़मीन होती, तो हमें पता होता. हमने उसकी पूजा करायी होती. यही देवघर की परंपरा है. बिना पंडों के यहां कोई शुभ काम नहीं होता.

Wednesday, January 9, 2019

अयोध्या मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में क्या क्या हुआ, जानें हर अपडेट

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि मालिकाना विवाद गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. मुस्लिम पक्ष और हिंदू महासभा दोनों पक्षकारों की ओर से सवाल उठाए गए. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को 29 जनवरी तक के लिए टाल दिया गया है. अब पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित शामिल नहीं होंगे और नई बेंच का गठन किया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने इस मामले की जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, वैसे ही मुस्लिम पक्षकार की ओर से कोर्ट में पेश हुए राजीव धवन ने कहा कि बेंच में शामिल जस्टिस यूयू ललित 1994 में कल्याण सिंह की ओर से कोर्ट में पेश हुए थे. राजीव धवन ने कहा कि कोई सवाल नहीं उठा रहा हूं, बल्कि कोर्ट की निगाह में इस बात को रखना चाहता हूं.

हालांकि इतना कहते ही उन्होंने तुरंत खेद भी जताया. जिसपर चीफ जस्टिस गोगोई ने उन्हें कहा कि वह खेद क्यों जता रहे हैं. आपने सिर्फ तथ्य को सामने रखा है. राजीव धवन की आपत्ति के बादपांचों जजों ने आपस में बात की और फिर इसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने खुद को इस मामले से अपने आपको अलग रखने का फैसला किया.

राजीव धवन ने इसके अलावा संविधान पीठ पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि ये मामला पहले 3 जजों की पीठ के पास था, लेकिन अचानक 5 जजों की पीठ गठित की गई है. ऐसे में इसे लेकर कोई न्यायिक आदेश जारी नहीं किया गया, जिसे जारी करना चाहिए. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राजीव धवन की इस आपत्ति पर कहा कि संविधान पीठ का गठन करना चीफ जस्टिस का अधिकार है.

मुस्लिम पक्षकार ही नहीं बल्कि हिंदू महासभा के वकील ने भी संविधान पीठ के सामने अनुवाद किए गए दस्तावेज को लेकर सवाल खड़े किए. इस मामले से जुड़े 18836 पेज के दस्तावेज हैं, जबकि हाईकोर्ट का फैसला ही 4304 पेज का है. इस संबंध मे जो भी मूल दस्तावेज हैं उनमें अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू और गुरमुखी में लिखे हैं. वकीलों ने कहा कि दस्तावेज के अनुवाद की भी पुष्टि होनी चाहिए.

इन सब पर पांच जजों की संविधान पीठ ने 29 जनवरी तक इस मामले को टाल दिया गया. कोर्ट ने कहा कि 29 जनवरी तक नई पीठ का गठन कर लिया जाएगा और इसी तारीख तक दस्तावेज के अनुवाद को लेकर जो आपत्तियां उन्हें भी दूर कर लिए जाएंगे.

इन दो मुख्य कारणों को देखते हुए ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले को 29 जनवरी तक के लिए टाल दिया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 29 जनवरी तक इस मसले पर नई बेंच का गठन किया जाएगा और दस्तावेजों के अनुवाद की पुष्टि नए रूप से की जाएगी. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में जो दस्तावेज पेश किए गए उसमें कुल 18836 पेज हैं.

इसके अलावा जो भी हाई कोर्ट का फैसला है वह 4304 पेज है. मामले से जुड़े मूल दस्तावेज अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू और गुरमुखी में लिखे गए हैं. वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के सामने कहा कि जिन पार्टियों ने इन दस्तावेजों का ट्रांसलेशन किया है उसकी पुष्टि होनी भी जरूरी है. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस पुष्टि को भी 29 जनवरी तक पूरा करने को कहा है.

आपको बता दें कि इससे पहले भी जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट में आया था. तब कुल 9000 पन्नों के दस्तावेज, 90000 पन्नों में हिन्दी-अरबी-उर्दू-फारसी-संस्कृत के धार्मिक दस्तावेज थे. तब रिटायर्ड दीपक मिश्रा की बेंच के सामने सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अनुवाद करवाने की अपील की थी.

हालांकि, कई जानकारों का मानना है कि इतने अधिक संख्या में दस्तावेजों का वेरिफेकशन करना इतने कम समय में करना नामुमकिन है. क्योंकि पहले भी जब हिन्दी भाषा में अनुवाद किया गया था तो वकीलों ने अंग्रेजी में अनुवाद मांगा था. जिसके बाद यूपी सरकार को सभी दस्तावेजों को ट्रांसलेट करवाने में 4 महीने समय तक का लग गया था.

Wednesday, January 2, 2019

सबरीमला में 50 साल से कम उम्र की दो महिलाओं ने किया प्रवेश

केरल के सबरीमला मंदिर में 50 साल से कम उम्र की दो महिलाओं के प्रवेश के बाद मंदिर को लगभग दो घंटे तक 'शुद्धीकरण' के लिए बंद रखा गया. इन महिलाओं के प्रवेश के साथ ही मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के प्रवेश ना करने की दशकों पुरानी परंपरा ख़त्म हो गई.

40 वर्षीय बिंदु अम्मिनि और 39 वर्षीय कनकदुर्गा ने इससे पहले भी पुलिसकर्मियों के साथ 24 दिसंबर को मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की थी लेकिन भारी विरोध के कारण वे मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकी थीं.

बिंदु ने बीबीसी हिंदी से बात करते हुए कहा, ''हमने देर रात डेढ़ बजे पंबा से चढ़ाई शुरू की. सबरीमला के परिसर तक हमें पहुंचने में 3.30 बज गए फिर हमने पूजा की. इस दौरान पुलिस ने हमें सुरक्षा दी. ''

''हम दोनों ही श्रद्धालु हैं. मेरा जन्म 1978 में हुआ और कनकदुर्गा का जन्म साल 1979 में हुआ है. मैं सासता की भक्त हूं और कनकदुर्गा स्वामी अयप्पा की भक्त हैं. हम दोनों ने देश के कई मंदिरों के दर्शन किए हैं.''

दर्शन के बाद नीचे आकर बिंदु ने बीबीसी से कहा, ''स्वामी अयप्पा के दर्शन करने में श्रद्धालुओं ने मेरी मदद की. वो सच्चे श्रद्धालु हैं. इसने इस बात को साबित कर दिया है कि केवल कुछ कट्टरपंथी ही महिलाओं को वहां पूजा करने से रोक रहे हैं. कई श्रद्धालुओं ने मुस्कुराकर मेरा स्वागत किया. इन श्रद्धालुओं के व्यवहार से मैं बेहद ख़ुश हूं.''

उधर सबरीमला कर्मा समिति ने इसके विरोध में बुधवार को केरल में बंद बुलाया है. इस समिति के अंतर्गत कई हिंदू संगठन आते हैं. संस्था के संयोजक एस जे आर कुमार ने बीबीसी हिंदी को बताया, ''हमने कल हड़ताल बुलाई है. महिलाओं को अंधेरे में चोरों की तरह मंदिर में दाखिल करवाने की साज़िश रचने के लिए मुख्यमंत्री विजयन ज़िम्मेदार हैं. ये सरकार ऐसा काम इसाई और मुसलमान समुदाय के साथ भी कम कर सकती है.''

सामाजिक कार्यकर्ता और अयप्पा सेना के संयोजक राहुल ईश्वर ने कहा, "पुलिस ने दोनों महिलाओं को ट्रांसजेंडर बताकर मंदिर में दाखिल करवाया और लोगों के साथ धोखा किया."

जैसे ही इन महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का वीडियो सामने आया मंदिर के पुजारी ने 'शुद्धीकरण' के लिए मंदिर के द्वार बंद कर दिए.

सबसे पहले पिछले साल अक्तूबर में रेहाना फ़ातिमा और पत्रकार कविता जक्काला ने मंदिर में प्रवेश की कोशिश की थी. लेकिन मंदिर के मुख्य पुजारी ने उस वक़्त मंदिर बंद करने की दी और ये महिलाएं प्रवेश नहीं कर सकीं.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बिदुं और कनकदुर्गा ने वो परंपरा तोड़ी है. जिसे तोड़ने में अबतक कम से कम 10 महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया गया.

दलित एक्टिविस्ट और लेखक सनी कप्पिकड़ ने बीबीसी हिंदी को बताया, '' पिछले महीने मंदिर में प्रवेश की कोशिश के वक़्त इन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. सबरीमला दलित और आदिवासी काउंसिल के सदस्यों ने इन्हें सुरक्षा दी थी.''

महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की ख़बर पर ख़ुद केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने मुहर लगाई है. उन्होंने एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा, ''महिलाओं ने मंदिर में पुलिस की सुरक्षा के साथ प्रवेश किया है. ''

28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं को स्वामी अयप्पा के मंदिर परिसर में जाने की अनुमति दे दी थी. हालांकि जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा था कि धार्मिक मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.

दो महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिक्रिया देते हुए 'रेडी टू वेट' मुहिम से जुड़ी पदमा पिल्लई ने बीबीसी से कहा, ''एक श्रद्धालु के तौर पर ये बेहद दुखद है कि सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी वहां के संगठन विरोध कर रहे हैं. इस पर अध्यादेश लाया जाना चाहिए.